Saturday 26 March 2011

शरीयत

शरीयत या शरारत
देश में जब भी समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास किया जाता है ,यहाँ के मुसलमान इसका विरोध करने लगते हैं ,और इसे इस्लामी शरीयत में हस्तक्षेप बता कर ,अपने धार्मिक मौलिक अधिकारों का हनन निरूपित करते हैं .इसलिए हर बार यह अटक जाता है .हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने पाहिले ही निर्देश जारी कर दिए हैं
मुसलमानों की यह दलील है की शरीयत का कानून कुरान पर आधारित है और इसे ख़ुद अल्लाह ने बनाया है ,इसलिए इसमे किसी प्रकार का परिवर्तन या सुधार करना सम्भव नहीं है शरीयत संविधान और देश के कानून से ऊपर है
हमें देखना है की यदि शरीयत अल्लाह का कानून है तो उसमे सभी देशों के ,सभी धर्मो के ,स्त्री पुरुषों को एक समान अधिकार दिया जाना चाहिए था .किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए था .लेकिन ऐसा नहीं है .शरीयत में महिलाओं को कोई अधिकार नहीं हैं ,और गैर मुस्लिम मानो सृष्टि के निकृष्ट जीव है जिनका कोई मूल्य नहीं है .लगता है अल्लाह पक्षपाती और संकीर्ण विचारों वाला है

कुरान में ऐसे कई उदाहरण मिल जायेंगे जिसमे महिलाओं और गैर मुसलामानों को हेय बताया गया है यहाँ दिए गए एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायेगी।
कुरान की सूरे मायदा की आयत ३३ में कुछ अपराधों और उनकी सजाओं के बारे में लिखा है ,जिसे इस्लामी परिभाषा में हुदूद कहा जाता है .इसके अनुसार
-व्यभिचार करने की सज़ा पत्थर मार कर जान लेना है ,जिसे रजम कहा जाता है
-यदि कोई मुसलमान विवाहित मुस्लिम व्यक्ती पर व्यभिचार का झूठा आरोप लगाए तो उसे ८० कोडे मारे जायेंगे।
-इस्लाम धर्म छोड़ने की सज़ा मौत है।
-शराब पीने की सज़ा ८० कोडे
-चोरी करने पर कलाई के ऊपर से दायाँ हाथ काटना
-रहज़नी और लूट के लिए हाथ पैर काटने की सज़ा
-डाका डालना जिस से किसी की मौत भी हो जाए ,तो इसकी सज़ा तलवार कत्ल करना या सूली चढाना है

यदि यही शरीयत का कानून है तो सभी मुसलमान इसे अपने ऊपर लागू कराने की मांग क्यों नहीं करते हैं .इन अपराधों के लिए वह यहाँ की अदालतों में ही जाना क्यों पसंद करते हैं .कारण साफ़ है की ,ज्यादातर मुसलमान इन्हीं अपराधों के दोषी पाये जाते हैं ,और अगर शरीयत के मुताबिक उन्हें सज़ा दी जायेगी तो एक दो साल में ही मुसलामानों की संख्या आधी रह जायेगी .भारतीय कानून के चलते उनको बचने की अधिक संभावना है .वह दोनों नावों की सवारी चाहते हैं
अब देखिये शरीयत में ह्त्या जैसे जघन्य अपराध के लिए ,क्षतिपूर्ति का क्या विधान है .यदि कोई मुसलमान किसी दूसरे मुसलमान की ह्त्या करता है ,तो उसे मारे गए व्यक्ति के परिवार को इसे प्रकार से हर्जाना देना होगा -
उसे १०० ऊंट ,या २०० गायें ,या १००० दुम्बे ,या २०० जोडी यमनी वस्त्र ,या १०००दीनार सोने के,या १०००० दिरहम चांदी के देने पड़ेंगे
लेकिन मुस्लिम महिला की ह्त्या करने पर ,हत्यारे को बताये गए हर्जाने का आधा भाग ही देना पडेगा। अर्थात अल्लाह की नज़र में महिला की कीमत पुरूष की कीमत से आधी है।
और सबसे नीचता की बात तो यह है की यदि कोई मुसलमान किसी काफिर अर्थात गैर मुस्लिम की ह्त्या करता है तो शरीयत के मुताबिक उसे कोई हर्जाना नहीं देना पडेगा .शरीयत में यह कोई अपराध ही नहीं है जिसका हर्जाना दिया जाए।
इसे से स्पष्ट होता है की आतंकवादी इसी शरीयत का पालन करते हुए दुनिया भर में हत्याएं करते हैं और उसे एक अपराध मानते हुए ,मुहम्मद का आदेश और अल्लाह को खुश करने का ज़रिया ,और इस्लाम का धार्मिक कार्य मानते है .और इसी शरीयत के कारण वे महिलों पर भी अत्याचार करते है .और उन पर तरह तरह की पाबंदियां लगाते रहते हैं
आतंकवाद का मूळ यही शरीयत का जगली कानून है,इसे ईश्वर द्वारा निर्मित मानना मूर्खता होगी .ऐसा लगता है की यह जरूर किसी मानव मात्र के शत्रु की एक शरारत है

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